पल भर पहले जो था काला
नभ कैसा नीला हो आया,
धुला-धुला सब स्वच्छ नहाया
प्रकृति का मेला हो आया !
इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
सौंदर्य अपूर्व बिखराता,
दो तत्वों का मेल गगन में
स्वप्निल इक रचना रच जाता !
जहाँ-जहाँ अटकीं जल बूंदें
रवि कर से टकराकर चमकें,
जैसे नभ में टिमटिम तारे
पत्तों पर जलकण यूँ दमकें !
जहाँ-तहाँ कुछ नन्हें बादल
होकर निर्बल नभ में छितरे,
आयी थी जो सेना डट के
रिक्त हो गयी बरस बरस के !
पूरे तामझाम संग थी वह
काले घन ज्यों गज विशाल हो,
गर्जन-तर्जन, शंख, रणभेरी
चमकी विद्युत, तिलक भाल हो !
पंछी छोड़ आश्रय, चहकें
मेह थमा, निकले सब घर से
सूर्य छिपा था देख घटाएँ
चमक रहा पुनः चमचम नभ में !
जगह जगह बने चहबच्चे
फुद्कें पंछी छपकें बच्चे,
गहराई हरीतिमा भू की
शीतलतर पवन के झोंके !
अनिता निहालानी
१४ मई २०११
इंद्रधनुष का सजीव और बहुत ही सुंदर चित्रण ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रकृति की छटा को समाए बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी कविताओं और गीतों में प्रकृति के ढेर सारे रंग देखने को मोलते है.ये पंक्तियाँ विशेष रूप से दिल को छू गयी;
जवाब देंहटाएंइंद्रधनुष सतरंगी नभ में
सौंदर्य अपूर्व बिखराता,
दो तत्वों का मेल गगन में
स्वप्निल इक रचना रच जाता !
बधाई.
प्रकृति की सुंदरता का बहुत जीवंत चित्रण..आभार
जवाब देंहटाएंजहाँ-जहाँ अटकीं जल बूंदें
जवाब देंहटाएंरवि कर से टकराकर चमकें
प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाते
सुन्दर और लुभावने शब्द ...
मन-भावन कविता .
बहुत सुन्दर......ये तस्वीर देख कर याद आया मैं बहुत छोटा था स्कूल में पढता था तब मैंने इन्द्रधनुष देखा था पूरा सातों रंगों में रंगा.........अरसा हो गया अब तो कहीं दीखता ही नहीं.....
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार! इमरान जी, यह कविता मैंने हमारे बगीचे में बैठकर सामने गगन में इंद्रधनुष को देखकर लिखी थी...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है ...एकदम सजीव चित्रण ..आभार
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