शब्दातीत....
नीरव सन्नाटा है जहाँ
एक अस्पृश्य मौन
अंतहीन चुप्पी !
निष्तरंगता...वहाँ कम्पन भी नहीं
सूक्ष्म कम्पन जहाँ
झील में फेंकी चट्टान सा प्रतीत होता है
जहाँ डूब जाती हैं
सागर की अतल गहराइयाँ भी
जहाँ खो सकते हैं
हजारों एवरेस्टों की ऊंचाइयाँ भी !
उसी निपट एकांत में
रचा गया था सृष्टि का खेल
अचल, अटूट, अजर उस सत्ता को
कोई नाम भी क्या दें...
सारे शब्दों का जहाँ होता है अंत
उसे शब्दातीत कहना भी तो व्यर्थ है
उस अनंत मौन में ऋषि के भीतर
शिव की तीसरी आँख खुलती है...!
अति सुंदर...........
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहूँ!!!!!
सादर.
बढ़िया |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनायें |
आभार |
उस अनंत मौन में ऋषि के भीतर
जवाब देंहटाएंशिव की तीसरी आँख खुलती है...!
यही तो सार है ..... सुंदर अभिव्यक्ति
उस अनंत मौन में ऋषि के भीतर
जवाब देंहटाएंशिव की तीसरी आँख खुलती है...!
गज़ब ………कितना सुन्दर और गहन ।
उसी निपट एकांत में
जवाब देंहटाएंरचा गया था सृष्टि का खेल
अचल, अटूट, अजर उस सत्ता को
कोई नाम भी क्या दें...
शानदार और बहुत ही गहन ।
उस अनंत मौन में ऋषि के भीतर
जवाब देंहटाएंशिव की तीसरी आँख खुलती है...!.........गहन सुंदर अभिव्यक्ति
शब्दातीत.....भाव और शाश्वत सत्य..
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति.. ...आभार
जवाब देंहटाएंइस तरह की अन्नुभूति हो तो शब्दातीत होते ही हैं।
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