यह कैसी विरासत
बच्चा प्रेम से भरा आता है जग में
कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत
अक्सर दबा ही रह जाता है
भीतर प्रेम का बीज
जिसे सींचना था स्नेहिल स्पर्श से
झोंक दिया जीता है प्रतिस्पर्धा की आग में
उसे जल्दी ही....
कभी खा जाती है अभावों की आग
कभी अन्याय और असामनता का जहर
मिला दिया जाता है
उसके भोजन और पानी में
मारो, काटो की भाषा सिखाई जाती है
मारो कीटों को
काटो जंगलों को, जानवरों को
नहीं सिखाते भाषा सह-अस्तित्व की
नहीं पढ़ाते
सहयोग की रीति और सुनीति
प्रकृति से दूर होते ही
आदमी जैसे बदल जाता है
और अपनी ही संतति को
विरासत में मृत्यु दिए जाता है...
मर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(20-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
वन्दना जी, स्वागत व आभार !
हटाएंमर्मस्पर्शी......कटु सत्य को उजागर करती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंlatest post क्या अर्पण करूँ !
लानत है हम सब पर..
जवाब देंहटाएंसचमुच अमृता जी, हममे से हरेक इस स्थिति के लिए किसी न किसी रूप में जिम्मेदार है..
हटाएंमर्मस्पर्शी सार्थक रचना.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना. शिशु तो अक्सर वही प्रतिविम्बित करते जो संस्कार उसमे भरे जाते हैं. ज़ाहिर है अपने अंदर का बहुरुपिया वहाँ जा के समय के साथ प्रस्फुटित हो उठता है. अमल गीली मिटटी में ना जाने कौन-कौन से तत्व और यौगिक मिल जाते हैं.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी, इमरान, माहेश्वरी जी, कालीपद जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंनहीं पढ़ाते
जवाब देंहटाएंसहयोग की रीति और सुनीति
प्रकृति से दूर होते ही
आदमी जैसे बदल जाता है
और अपनी ही संतति को
विरासत में मृत्यु दिए जाता है...
मार्मिक प्रसंग भाव पूर्ण प्रस्तुति
वीरू भाई, आभार !
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