यह तो था अपना ही घर
पलक बिछाए वह बैठा है
दोनों बाहें भी फैलाये,
एक कदम उस ओर बढ़ें तो
बड़े वेग से वह भी आये !
प्रियतम का घर दूर नहीं था
राह भटक कर हमीं अभागे,
हाथ थाम कर लाया वह ही
जिस पल थे प्रमाद से जागे !
जाना पहचाना आलम था
यह तो था अपना ही घर,
धूल बहुत फांकी दुनिया की
कभी नजर न डाली भीतर !
एक उजाला मद्धिम मद्धिम
राग मधुर कोई बजता था,
शांति अगर सी फ़ैल रही थी
प्रेम दीप बन के जलता था !
नहीं छलावा नहीं झूठ का
नहीं लोभ का नाम वहाँ था,
नहीं अभाव न मांग थी कोई
मस्ती का इक जाम वहाँ था !
जाना पहचाना आलम था
जवाब देंहटाएंयह तो था अपना ही घर,
धूल बहुत फांकी दुनिया की
कभी नजर न डाली भीतर !............वाह, बहुत ही सुंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति !!
मन को शांति देते भाव ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
जवाब देंहटाएंवाह! अति सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और भावपूर्ण ...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर |
जवाब देंहटाएंराह भटक कर हमीं अभागे....सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....
जवाब देंहटाएंकल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह ! अगाध शान्ति के भाव से भरती मधुर मरहम सी रचना ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव लिए रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
रीना जी, साधना जी, अमृता जी, अनुपमा त्रिपाठी जी, यशवंत जी, देवेन्द्र जी, इमरान, ऋता जी, प्रसन्नजी,कालीपद जी, माहेश्वरी जी, वीरू भाई जी, ललित जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति...
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