एक मौन सन्नाटा भीतर 
सहज कभी था आज जटिल है 
कृत्य कुंद जब भाव सुप्त है, 
एक मौन सन्नाटा भीतर 
हुई शब्दों की धार लुप्त है ! 
नहीं लालसा, नहीं कामना 
जीवन की ज्यों गति थमी है, 
इक आधार मिला नौका को 
बीच धार पतवार गुमी है ! 
अब न कहीं जाना राही को 
घर से दूर निकल आया है, 
ममता के पर कटे मुक्ति का
राग हृदय को अब भाया है ! 
न कोई संदेश भेजना 
 न ही कोई छाप छोड़ना, 
लक्ष्य सभी पीछे छूटे हैं 
नहीं राम को धनुष तोड़ना ! 
जीवन, जब जैसा मिल जाये 
दोनों बाँह पसारे लेता, 
 जहाँ जरूरत जो भी दिखती 
अंतर को खाली कर देता !  
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sundar v gahan bhavon kee sarthak abhivyakti .badhai
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@भूली हुई यादों
निर्लिप्त हो कर रहना- बड़ा मुश्किल है इन सारे संबंधों और संसार के बीच .
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, जीवन अपने आप सब सिखा देता है..एक वक्त हरेक के जीवन में आता है देर सबेर जब मात्र साक्षी होने का जी होता है
हटाएंबहुत खूब...................बेहतरीन आदरणीया!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
जवाब देंहटाएंजीवन, जब जैसा मिल जाये
जवाब देंहटाएंदोनों बाँह पसारे लेता,..........समर्पण का भाव जीवन का भाव ही बदल देता है |
अनिल जी, देवेन्द्र जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
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