लौट-लौट आती है प्रतिध्वनि
हर पुकार सुनी जाती है 
लौट-लौट आती है प्रतिध्वनि 
हर मनुहार चुनी जाती है !
यूँ ही तो नहीं गगन सज रहा 
तारों से रात्रि मंडित है,
नव रंगों से उषा निखरती 
धरा पादपों से सज्जित है !
रोज बहार खिली आती है 
स्वागत करने उस प्रियतम का 
बन उपहार चली आती है ! 
मेघ उमड़ते अमृत जल से 
करने धरती का अभिनन्दन,
शस्य श्यामला धरा विहंसती 
पुष्प कर रहे जैसे वन्दन !
नित इक धार बही आती है 
दे जाती संदेशे उसके 
कई आकार धरे जाती है !

नित इक धार बही आती है
जवाब देंहटाएंदे जाती संदेशे उसके
कई आकार धरे जाती है !
...बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...
कविता की आत्मा भी मनोरम और और उसकी संरचना भी. अच्छा लग पढ़कर.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंदिव्यता का अवतरण !
जवाब देंहटाएंमहेश्वरी जी, देवेन्द्र जी, प्रतिभा जी, कैलाश जी, निहार जी, ओंकार जी स्वागत व आभार
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