विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनायें
रोज भोर में
चिड़िया जगाती है
झांकता है सूरज झरोखे से
पवन सहलाती है
दिन चढ़े कागा
पाहुन का लाये संदेस
पीपल की छाँव
अपने निकट बुलाती है
गोधूलि तिलक करे
गौ जब रम्भाती है
झींगुर की रागिनी
संध्या सुनाती है
नींद में मद भरे
रातरानी की सुवास
प्रातः से रात तक
प्रकृति लुभाती है !
नदियाँ दौड़ती हैं सागर तक
देती सौगातें राह भर
अवरुद्ध करे निर्मल धारा
मानव क्यों स्वार्थ कर
अपना ही भाग्य हरे
प्रकृति का चीर हरे !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज विश्व पर्यावरण दिवस है - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुंदर और प्रभावी कविता, कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार हिमकर जी व ओंकार जी
जवाब देंहटाएंसचमुच, हम सब को जागरूक होने की जरूरत है।
जवाब देंहटाएं............
लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!
प्रभावी कविता
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