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बुधवार, जून 5

अब चलो, पर्यावरण की बात सुनें

अब चलो, पर्यावरण  की बात सुनें 


ख़त्म हुई चुनाव की गहमा गहमी 

अब चलो, पर्यावरण  की बात सुनें 


सूखते जलाशयों पर नज़र डालें 

कहीं झुलसती धरती की बात सुनें 


कहीं घने बादलों का करें स्वागत

उफनती नदियों का दर्द भी जानें  


पेड़ लगायें, जितने गिरे या कटे   

जल बचायें, भू में जज्ब होने दें  


गर्म हवाओं में इजाफ़ा मत करें  

ग्रीनहाउस गैसों को ना बढ़ायें 


बरगद लगायें बंजर ज़मीनों पर 

न हो, गमलों में चंद फूल खिलायें 


पिघल रहे ग्लेशियर बड़ी तेज़ी से 

पर्वतों पर न अधिक  वाहन चलायें 


सँवारे कुदरत को, न कि दोहन करें 

मानुष   होने का कर्त्तव्य निभायें 


पेड़-पौधों से ही जी रहे प्राणी 

है यह धरा  जीवित, उसे बसने दें 


जियें स्वयं भी जीने दें औरों को

नहीं कभी कुदरती आश्रय ढहायें 


साथ रहना है हर हाल में सबको 

बात समझें, यह  औरों को बतायें ! 


शुक्रवार, जून 5

विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनायें

विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनायें


रोज भोर में
चिड़िया जगाती है
झांकता है सूरज झरोखे से
पवन सहलाती है
दिन चढ़े कागा
पाहुन का लाये संदेस
पीपल की छाँव
अपने निकट बुलाती है
गोधूलि तिलक करे
गौ जब रम्भाती है
झींगुर की रागिनी
संध्या सुनाती है
नींद में मद भरे
रातरानी की सुवास
प्रातः से रात तक
प्रकृति लुभाती है !

नदियाँ दौड़ती हैं सागर तक
देती सौगातें राह भर
अवरुद्ध करे निर्मल धारा
मानव क्यों स्वार्थ कर
अपना ही भाग्य हरे
प्रकृति का चीर हरे !

मंगलवार, जून 5

दुलियाजान में तेंदुआ


३ जून २०१२ को असम के डिब्रूगढ़ जिले की तेल नगरी दुलिया जान में एक तेंदुआ जंगल से भटक कर आ गया, १३ लोगों को घायल कर स्वयं शिकार हुआ वन्य अधिकारी की गोली का, मृत तेंदुए को पिंजरे में बंद करके ले जाया गया तब सैकड़ों की भीड़ वहाँ खड़ी थी पर शायद ही किसी की आँखें नम हों, जंगल के उस बेताज बादशाह के लिये.  


दुलियाजान में तेंदुआ

कोई शहरी भूले से जंगल में भटक जाये
तो शायद उसकी जान खतरे में पड़ सकती है,
पर कोई जंगली पशु जब निकल पड़ता है
किसी कारण से जंगल तजकर
तो उसकी शामत निश्चित आ जाती है...
घायल करे कोई पशु, स्वयं चोट खाकर
यह स्वाभाविक है..
किन्तु जान ले ले उत्तेजित भीड़
किसी पशु की,
 यह अपराध नहीं तो क्या है..?
पर नहीं दी जायेगी जिसकी सजा
जंगल कटते रहेंगे, आश्रय हीन पशु भटकते रहेंगे
और होंगे शिकार मानव की तथाकथित समझदारी के...
इंसान ने बड़ा न होने की कसम खाली है शायद
ताउम्र बच्चा ही बना रहता है
अजूबा तो नहीं था तेंदुआ
चला जाता अपने आप
जैसे चुपचाप आया था
उसे दिया जाता यदि मार्ग
लेकिन लाठियों, पत्थरों से मार कर
बाध्य किया उसे हिंसक होने को
विश्व पर्यावरण दिवस पर
यह कैसा उपहार दिया जंगल को मानव ने
अखबार के मुखपृष्ठ पर छपी है
तस्वीर उस अभागे तेंदुए की
घायल हुए हैं तेरह लोग भी
शौक चढ़ आया कुछ को
संभवतःबहादुरी दिखाने का
निहत्थे निकल पड़े जूझने उससे
कुछ बदला लेने पर हो गए उतारू
और देखती रही...
सैकड़ों की भीड़ तमाशबीन बनी
सचमुच भीड़ का कोई विवेक नहीं होता
ऐसी भीड़ जब घिर आये चारों ओर
उत्तेजना फैली हो वातावरण में
तो संतुलन खो देगा कोई भी
वह तो एक जंगली पशु था...
एक जिम्मेदारी भी चाहिए
 इंसान के दिल को परिपक्व होने के लिये
व्यर्थ ही उछलता दिल
कभी-कभी घायल हो जाता है
अपने ही हाथों
मंशा नहीं होती उसकी
न आहत करने की न आहत होने की
पर अनजाने में घट जाते हैं दोनों ही
बाद में जितना सोचे,
मुक्त नहीं होता वह निज कृत्यों से
यदि वह मालिक बना रहता है तो..
यदि मान लिया है खुद को प्रकृति का एक अंश
अस्तित्त्व उसकी सम्भाल करता ही है...