जिसकी प्यास अधूरी रब की
दुःख को भी न जाना जिसने
सुख का स्वाद चखे वह कैसे
दुःख को ही जो सुख मानता
सुख हीरे को परखे कैसे ?
हार-जीत तो लगी रहेगी
हँसना-रोना ही जीवन है,
जिसने सूत्र यही अपनाया
कहाँ उसे मुक्ति का क्षण है !
पीड़ा सहते सहते बढ़ता
श्वास फुलाकर सीढ़ी चढ़ता,
चन्द पलों की राहत को ही
जीवन की हर निधि जानता !
नहीं उसे प्राप्य जीवन का
जिसकी प्यास अधूरी रब की,
तिल भर दुःख भी नहीं बनाता
वही प्रेरणा बनता सबकी !
जो भी हम भीतर रचते हैं
वही बाहर से वापस मिलता,
अंतर में यदि स्वर्ग सृजा है
बाहर कुसुमों का पथ सजता !
जैसा मन वैसा ही संसार ... सच कहा आपने ... अन्दर की सुन्दरता जरूरी है बाहर की अच्छाई देखने के लिए ....
जवाब देंहटाएंस्वागत व बहुत बहुत आभार !
हटाएंFull of positivity in a thread of beautiful words.
जवाब देंहटाएं