सरहद पर बर्फीले पर्वत
कण-कण में भारत
धरती के
बहता एक शाश्वत
सँजीवन,
दूर पूर्वी अंचल
में जब
उगती नभ में
अरुणाभ, नमन !
सरहद पर बर्फीले
पर्वत
कहीं सिंधु,
रेतीले निर्जन
रक्षित करने को
तत्पर है
सेनानी का तन मन
अर्पण !
जयहिन्द मधुर नाद
गूँजता
अंतर में हिलोर
इक उठती,
नदिया, पर्वत, कानन, अम्बर
हर कोने को छू
विहंसती !
पुण्य भूमि यह
पुण्य शील है
राम, कृष्ण, बुद्धों की आभा,
गंगा, कावेरी, सतलज से
सिंचित है जन-जन
की आशा !
आज नवल रवि दस्तक
देता
कोटि-कोटि
भाारतवासी को,
पुरुषार्थ कर इसे संवारें
अवसर मिलता
सौभागी को !
सुन्दर शब्दों में माँ भारती और फिर उसके अनुयायियों को सजग करते भाव लिए है ये रचना ... धन्य हैं जो इस देश में पैदा हुए ... इस माटी में पल बढ़ रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 51वीं पुण्यतिथि - पंडित दीनदयाल उपाध्याय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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