जीवन
बरसों बीते जीते जीते
जीवन से कब आँख मिलाई,
निकट खड़ा वह मुस्काता था
दुःख की देते रहे दुहाई !
शब्दों के जंगल में भटके
ज्योति किरण न छन जहाँ आई,
मौन की इक नदी बहती थी
किन्तु कभी ना प्यास बुझाई !
कुसुमों संग खिलता है जीवन
पवन परस में भी छू जाए,
शीतल छुअन धरा की पग पग
तपन अनिल को भी दे जाए !
जीवन इस पल में मिलता है
यादों में क्यों उसे बुलायें,
स्वप्नों में अंतर भटक रहा
अभी-अभी वह नगमे गाये !
बहुत खूब ,बेहतरीन अभिव्यक्ति अनीता जी ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१२-०१-२०२०) को "हर खुशी तेरे नाम करते हैं" (चर्चा अंक -३५७८) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 12 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंबेहतरीन रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अनुराधा जी !
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