अंतिम भाग
अमर स्पर्श
नारी के प्रति पन्त जी के हृदय में अत्यधिक सम्मान है. वह कहते हैं स्त्री का हृदय तिजोरी में बन्द है. उसपर समाज की बहुत बन्दिशें हैं. स्त्री का सबसे सुंदर हिस्सा उसकी भावना है. उसकी भावना का फूल अभी तक धरती पर खिल नहीं पाया है. वह उस समय की कल्पना करते हैं जब स्त्री स्वतन्त्र होकर धरती पर विचरण कर सकेगी, उसे कोई भय नहीं होगा.
'मुक्त करो नारी को मानव,
चिर वन्दिनी नारी को।
युग-युग की निर्मम कारा से,
जननी सखि प्यारी को।'
श्री अरविन्द जी की पुस्तक ’भागवत जीवन’’ से वे इतने प्रभावित हुए कि उनके जीवन की दिशा ही बदल गई पन्त जी कहते हैं कि ’’इसमें सन्देह नहीं कि अरविन्द के दिव्य जीवन दर्शन से मैं अत्यन्त प्रभावित हूँ। श्री अरविन्द आश्रम के योगयुक्त अन्तःसंगठित वातावरण के प्रभाव से उर्ध्व मान्यताओं सम्बन्धी मेरी अनेक शंकाएँ दूर हुई है।’’ इस युग की रचनाओं में पन्त जी ने मानव को उर्ध्वचेतन बनने की प्रेरणा दी है। पन्त जी आन्तरिक व मानसिक समता को अत्यन्त आवश्यक मानते है। इस काल की कविताओं में कवि ने चेतना को सर्वोपरि माना है। कवि ने ब्रह्म जीव और जगत तीनों को एक ही चेतना का रूप स्वीकार किया है। वह जड़ और चेतन में कोई भेद नहीं मानता।
वही तिरोहित जड़ में जो चेतन में विकसित।
वही फूल मधु सुरभि वही मधुलिह चिर गुंजित।।
पन्त कहते हैं, विज्ञान ने जड़ जगत की हर बाधा को मिटा दिया है. देश-विदेश एक दूसरे के निकट आ रहे हैं. किन्तु विज्ञान मनुष्य के भीतर का अंधकार नहीं मिटा सकता. वह सभ्य बना सकता है पर सुसंस्कृत नहीं बना सकता. इसके लिए तो भारत के प्राचीन दर्शन में निहित मूल्यों को ही ग्रहण करना होगा. इसलिए भौतिकता और अध्यात्म का समन्वय होना चाहिए. भगवान को यदि देखना है तो इसी जीवन में देखना होगा. आज विज्ञान और अध्यात्म को मिलकर काम करना है. वह मार्क्स से भी प्रभावित हुए, गाँधी जी से से भी, जिन्होंने भारतीय दर्शन को कर्मभूमि में उतार दिया.
किन तत्वों से गढ़ जाओगे तुम भावी मानव को ?
किस प्रकाश से भर जाओगे इस समरोन्मुख भव को ?
सत्य अहिंसा से आलोकित होगा मानव का मन ?
अमर प्रेम का मधुर स्वर्ग बन जाएगा जग जीवन ?
आत्मा की महिमा से मंडित होगी नव मानवता ?
प्रेम शक्ति से चिर निरस्त हो जाएगी पाशवता ?
पन्त जी चाहते थे संसार से विषमता मिट जाये धरती फिर मानव के रहने योग्य बन जाये, ज्यादा मानवीय हो जाये. धरा पर स्वर्ग आये, स्वर्ग मानव के भीतर ही है, उसे बाहर उतारना है. यह युग परिवर्तन का युग है, जैसे बसन्त से पहले पतझड़ आता है, वैसे ही आज पुराने मूल्य विघटित हो रहे हैं, एक नवीन युग आ रहा है. उनकी कविता ‘आओ, हम अपना मन टोवें’ कविता में कवि मानव को मन की निर्धनता से मुक्त होने की बात कहता है, स्वार्थ रहित मन ही अपने व औरों के जीवन को सुंदर बना सकता है.
आओ, अपने मन को टोवें!
व्यर्थ देह के सँग मन की भी
निर्धनता का बोझ न ढोवें।
जाति पाँतियों में बहु बट कर
सामाजिक जीवन संकट वर,
स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के
पथ में हम मत काँटे बोवें!
अंत में कवि की अनुपम कृति कला और बूढा चाँद में प्रकाशित इस अनुपम रचना का आनंद लें, जिसमें प्रेम की इतनी सजीव परिभाषा दी गयी है.
प्रेम
मैंने
गुलाब की
मौन शोभा को देखा ।
उससे विनती की
तुम अपनी
अनिमेष सुषमा की
शुभ्र गहराइयों का रहस्य
मेरे मन की आँखों में
खोलो ।
मैं अवाकू रह गया ।
वह सजीव प्रेम था ।
मैंने सूँघा,
वह उन्मुक्त प्रेम था ।
मेरा ह्रदय
असीम माधुर्य से भर गया ।
मैंने
गुलाब को
आठों से लगाया ।
उसका सौकुमार्य
शुभ्र अशरीरी प्रेम था ।
पन्त जी की रचनां में नारी मन के कोमल भाव का सहज और सुन्दर चित्रण मिलता है ... हर किसी को नारी मन की गांठें खोलना आसन नहीं होता ... पर पन्त जी ने इस कोमलता, इस संवेदना को जिया है अपनी रचनाओं में ... नमन है उनकी कलम को ...
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