शुक्रवार, सितंबर 11

रह जाता वह मुस्का कर

रह जाता वह मुस्का कर


स्मृतियों के अंबार तले यह 

दीवाना सा मन पिसता है, 

जन्मों-जन्मों जो बीज गिरे 

उन फसलों में अब घिरता है !


दिन भर जतन से साधा इसको 

स्वप्नों में सभी भूल गया, 

निद्रा देवी के अंचल में 

विश्राम मिला ना शूल गया !


दिवस रात्रि यह खेल चल रहा 

कोई देखे जाता भीतर, 

जिन भूलों पर झुँझलाता उर  

बस रह जाता वह मुस्का कर !


लक्ष्य बाहरी लगते धूमिल 

यही जागने की बेला है,

चौराहे पर बाट जोहती 

मृत्यु, शेष रही नहीं मंजिल !


अब तो द्वार खुले अनंत का 

मन में गूँजे बंसी की धुन, 

चाहों के जंगल अर्घट हों 

रस्ता दें झरनों को पाहन !



 

8 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    13/09/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......


    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-09-2020) को    "सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों"   (चर्चा अंक-3823)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. आध्यात्म की और लेे जाता सृजन

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