श्वास की धारा
लक्ष्यहीन जीवन से
श्वासें प्रश्न पूछतीं लगतीं !
क्या व्यर्थ रहेगा जीवन में
आना-जाना उनका ?
श्वासों की गहराई में
जो अनुपम शक्ति छिपी है,
क्यों नहीं रच डालें
सुखमय सुंदर कोई तराना !
मानव होकर जन्म लिया
उसकी गरिमा पहचानें,
वाणी, बुद्धि, विवेक मिले
उनकी भी महिमा जानें !
क्षणभंगुर यह जीवन का जो
मनहर कुसुम खिला है,
शुभ कर्मों से मधुर सुवास
जग में बंटती जाये !
कोना कोई निज भावों से
इस जग का महका दें,
लक्ष्य बना करें समर्पित
उन चरणों पर हृदय कमल !
किन्तु बहे ना व्यर्थ
मिली प्रसाद में जो यह धारा,
नहीं बना दे अनजाने ही
निज मन इसको कारा !
सच जीवन यूँ ही व्यर्थ गंवाना मुनासिब नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
स्वागत व आभार !
हटाएंसारगर्भित।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावप्रवण रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर सृजन
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