सुख-दुख
जो भी खुद से जुदा होता है
करीब उसके खुदा होता है
बनी रहती है जब तक भी खुदी
कहाँ कोई खुद से मिला होता है
पहले मिलना फिर बिछड़ना खुद से
यही इबादत का सिलसिला होता है
उलट दो ‘खुद’ को तो बन जाता है ‘दुख’
छिपा था सामने आ जाता है
सुख के पीछे खड़ा ही था खुस(खुश)
रब के साये में सुकून सदा होता है
हर्फों की माया है यह जहान सारा
‘चुप’ में ही वह मालिक बसा होता है
वही सबसे करीब है उसके
जिसकी फितरत में होना फना होता है
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित रचना..।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुदर
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