जो घर खाली दिख जाता है
एक-एक कर चुन डाले हैं
राह के सारे पत्थर उसने,
कंटक चुन-चुन फूल उगाये
हरियाली दी पथ पर उसने !
ऊपर-ऊपर यूँ लगता है
पर भीतर यह राज छिपा है,
वह खुद ही आने वाला है
उस हेतु यह जतन किया है !
जिस दिल को चुनता घर अपना
उसे संवारे सदा प्रेम से,
जो घर खाली दिख जाता है
डेरा डाले वहीं प्रेम से !
उसकी है हर रीत निराली
बड़ा अनोखा वह प्रियतम है,
एक नयन में देता आँसू
दूजे में भरता शबनम है !
वह जो है बस वह ही जाने
हम तो दूर खड़े तकते हैं,
वही पुलक भरता अंगों में
होकर भी हम न होते हैं !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-12-20) को "संयुक्त परिवार" (चर्चा अंक- 3909) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंउसकी है हर रीत निराली
जवाब देंहटाएंबड़ा अनोखा वह प्रियतम है,
एक नयन में देता आँसू
दूजे में भरता शबनम है ! ...सुंदर मनोहारी कृति...।
एक-एक कर चुन डाले हैं
जवाब देंहटाएंराह के सारे पत्थर उसने,
कंटक चुन-चुन फूल उगाये
हरियाली दी पथ पर उसने !
बहुत सुंदर रचना...🌹🙏🌹
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर।