लहराएगा मुक्त गगन में
अभी खोल में ढका बीज है
अभी बंद है उसकी दुनिया,
उर्वर कोमल माटी पाकर
इक दिन सुंदर वृक्ष बनेगा !
जल से निर्मल भरे ताजगी
धरती से गर्माहट उर में,
नृत्य पवन से भर-भर पल्लव
लहराएगा मुक्त गगन में !
शाखाओं पर पंछी आकर
बैठेंगे मृदु गान सुनाने,
फूलों के खिलने की आशा
उस पादप के मन अंकुराने !
वही बीज फिर फूल बना नव
खिल जाएगा रूपरंग में,
भँवरे तितली कीट अनेकों
गुनगुन गाकर उसे रिझाएं
मिलन घटेगा अस्तित्व से
फल बनकर फिर बीज धरेगा,
जहाँ से आ क्रीड़ा रची यह
उस भू में रोपा जाएगा !
छुपा बीज में राज सृष्टि का
खिलकर मुक्त हास जो बांटे,
तृप्त हुआ वह उर मुस्काता
सहज गुजर जाता इस जग से !
अभी खोल में ढका बीज है
जवाब देंहटाएंअभी बंद है उसकी दुनिया,
उर्वर कोमल माटी पाकर
इक दिन सुंदर वृक्ष बनेगा !..जीवन और प्रकृति दोनो को जोड़ती हुई सुंदर कृति ..।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन।
जवाब देंहटाएंबीज ही जीवन का आधार है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंजब वो परम भाव चारों ओर से घेर लेता है तो शब्द असमर्थ हो जाते हैं कुछ कहने में । बस परम तृप्ति की दशा होती है यहां आकर ।
जवाब देंहटाएंह्रदय से स्वागत व आभार आप सभी सुधीजनों का !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबीज के माध्यम से जीवन सार्थक हो सके इसका प्रयास ... बहुत उत्तम ...
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