शनिवार, जून 26

वह

वह 


मौन को कैसे लिखें अब 

भाव भी तो सारे अमूर्त ही हैं 

  वह अलख अपनी उपस्थिति 

 हर पल  दर्ज कराता है 

सदा साथ है, यह अहसास ही दिल को 

अपरिमित शक्ति से भर जाता है !


झर-झर बहता है   

ज्यों निर्झर वीराने वन में 

उसकी कृपा ऐसे ही बरसती है 

सुवास छिपी हुई ज्यों पुहुपों में 

अनायास ही बिखरती है 


मन अन्तर्लोक में थिरकता  

ज्यों नाचते हैं मयूर कानन में

उसके होने से ही रोशन है हर शै 

 छिपा वही तो है हर बात में  !

 

13 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वरीय अनुभूति है आपकी अभिव्यक्ति में ,बहुत सुंदर !

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22 -6-21) को "अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!"'(चर्चा अंक- 4109 ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. आपके स्वरों की आनन्द-गुञ्जार उसी का लीला-विलास है.

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  4. बहुत बहुत सुन्दर रचना | शुभ कामनाएं |

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  5. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
    सादर

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  6. मौन को कैसे लिखें अब
    भाव भी तो सारे अमूर्त ही हैं
    वह अलख अपनी उपस्थिति
    हर पल दर्ज कराता है...आपकी रचनाएँ हमेशा जीवन में आस्था और विश्वास रूपी ऊर्जा दे जाती हैं,सुंदर सृजन के लिए आपका बहुत आभार।

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  7. किसी मौन शक्ति पर विश्वास का अटूट सृजन।
    सुंदर।

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  8. सच है भाव अमूर्त हैं ... पर फिर भी मन में कल्पना जनम लेती है ...
    आकार भी देती है एकाकार कररने को ...

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  9. मौन को कैसे लिखें अब 

    भाव भी तो सारे अमूर्त ही हैं 

    बहुत सुंदर

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