नूतन तरु के गात हो रहे
निर्मल गंगाजल से बहते
तुम ही श्यामल घन बन बरसे,
चिन्मय ! चेतनता बन रहते
है कण-कण में गति भी तुमसे !
खो, पुनः-पुनः तुम्हें पाना है
जैसे दिन और रात हो रहे,
नित नवीन संबंध जुड़े ज्यों
नूतन तरु के गात हो रहे !
शब्दों को आशय तुम देते
वाणी के तुम संवाहक हो,
तुम्हीं प्रेरणा लक्ष्य भी तुम्हीं
शुभता के शाश्वत वाहक हो !
तुम बिन रहे अधूरा सा सब
जीवन अर्थवान हो तुमसे,
मननशील हो मानस जिनका
मनुज वही बन पाते ऐसे !
शब्दों को आशय तुम देते
जवाब देंहटाएंवाणी के तुम संवाहक हो,
तुम्हीं प्रेरणा लक्ष्य भी तुम्हीं
शुभता के शाश्वत वाहक हो !--बहुत अच्छी पंक्तियां...।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
खूबसूरत भावों से सजी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंनिर्मल गंगाजल से बहते
जवाब देंहटाएंतुम ही श्यामल घन बन बरसे,
अद्भुत भाव,
गतिमय, मतिमय
जीवन कृतिमय
तुम बिन रहे अधूरा सा सब
जवाब देंहटाएंजीवन अर्थवान हो तुमसे,
मननशील हो मानस जिनका
मनुज वही बन पाते ऐसे !
बहुत खूब,लाजबाब सृजन सादर नमन
कण कण में ईश्वर का वास, बहुत सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह! तरलता से शुभ्र भाव बह रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंआत्मा को तृप्त करता सृजन ।
सुंदर भाव सुंदर शब्द सौष्ठव।
जवाब देंहटाएंतुम बिन रहे अधूरा सा सब
जीवन अर्थवान हो तुमसे,
मननशील हो मानस जिनका
मनुज वही बन पाते ऐसे !..जीवन का आशय समझाती सुन्दर रचना ।
आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंआशा उम्मीद और ऊर्जा की बात करती हुई रचना ... लाजवाब ...
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