अपने दिल का द्वार खोल दें
आज वक्त से वादा कर लें
नव विश्वास आस नव भर लें,
हर सिलवट को झाड़ मनों से
जीवन पथ उजियाला कर लें !
चंद घड़ी जो पास हमारे
तंद्रा-नींद तमस न घेरे,
पल-पल उसका सदा सँवारें
अकर्मण्यता न डाले डेरे !
मन सपनों में ‘कोई’ जागा
टूटे नहीं कभी वह धागा,
जिसमें कृष्ण पिरोए जग को
तुलसी सहज विमल अनुरागा !
उसी एक का साथ मिले अब
गरल भी अमृत बनकर छलके,
खो जाए पीड़ा अभाव तब
पथ की हर बाधा वह हर ले !
द्वार खुला है निशदिन उसका
अपने दिल का द्वार खोल दें,
बरस रहा जो मधु फुहार बन
हटा आवरण उर में भर लें !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-12-21) को अपने दिल के द्वार खोल दो"(चर्चा अंक4276)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंआस, विश्वास और कर्म सुंदर प्रेरक सृजन।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर .....मन को उजास से भर लें ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 13 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार !
हटाएंखूबसूरत सकारात्मक पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंमनभावन और उत्कृष्ट सृजन
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकुसुम जी, संगीता जी, नीतीशजी, अनीता जी, मनीषा जी और ओंकार जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मोहक पंक्तियां
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार भारती जी!
हटाएंबेहतरीन रचना आदरणीया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंमन के द्वार खुल जाए तो जीवन सफल है ...