सदा पुकारे जाता था वह
बढ़े हाथ को थामा जिसने
पग-पग में जो सम्बल भरता,
वही परम हो लक्ष्य हमारा
अर्थवान जीवन को करता !
जन्मों से जो खोज चल रही
अनजाने में हदें टटोलें,
उसी प्रेम की है तलाश जो
अंतर मन का पट जो खोले !
अब जाकर तो भान हुआ है
सदा पुकारे जाता था वह,
ठुकराया था भ्रमित हृदय ने
अपनी निजता में सिमटे रह !
वही प्रेम वह कोमल करुणा
सहज शांति, क्षमता भी देता,
रग-रग में उल्लास जगाकर
अर्थ अनंत जगत में भरता !
वही ध्येय वह प्राप्य बने जब
शेष सहायक बन जाता है,
वरना आते-जाते जग में
निष्फल स्वेद बहा जाता है !
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-11-22} को "उम्र को जाना है"(चर्चा अंक 4622) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
हटाएंवही प्रेम वह कोमल करुणा
जवाब देंहटाएंसहज शांति, क्षमता भी देता,
रग-रग में उल्लास जगाकर
अर्थ अनंत जगत में भरता !
.. सच प्रेम और करुणा से मनुष्य में सहजता और शांति का निवेश होता है, सुंदर भवाभिव्यक्ति।
स्वागत व आभार जिज्ञासा जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी!
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अभिलाषा जी!
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी!
हटाएंईश्वर के प्रति आपकी भक्ति भावना से पूरित इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार अनंता जी!
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