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शनिवार, जून 29

एक खुला आसमान

एक खुला आसमान


 पहुँचे नहीं कहीं मगर, हल्के हुए ज़रूर 

मनों ने हमारे, कई बोझे उतारे हैं 


 बाँध कर रखा जिन्हें  था, खोने के त्रास से 

मुक्त किया जिस घड़ी, आसपास ही बने हैं 


प्रेम की कहानियाँ अब, रास नहीं आ रहीं  

अहं को ही प्रेम का, नाम जब से धरे हैं 


अहं की वेदी पर, शहीद हुआ प्रेम सदा 

प्रेम की कहानियों के, हश्र यही हुए हैं 


एक खुला आसमान, एक खुला अंतर मन 

हर तलाश पूर्ण हुई, होकर गगन जिये हैं 


जहाँ  से चले थे बुद्ध, वहीं लौट आये हैं 

पाया नहीं कुछ नवीन, व्यर्थ त्याग दिये हैं 


जीवन का देवता, भेंट यही माँगता है 

उतार दे हर बोझ जो, संग सदा चले है  


शुक्रवार, दिसंबर 9

चिड़िया और आदमी


चिड़िया और आदमी


चिड़िया भोर में जगती है 

उड़ती है, दाना खोजती है 

दिन भर फुदकती है 

शाम हुए नीड़ में आकर सो जाती है 

दूसरे दिन फिर वही क्रम 

नीले आसमान का उसे भान नहीं 

हरे पेड़ों का उसे भान नहीं 

हवाओं,सूरज, धूप का उसे भान नहीं 

परमात्मा का उसे भान नहीं 

पर वह मस्त है अपने में ही मग्न 

और उधर आदमी 

उठता है चिंता करता है 

चिंता में काम करता है 

चिंता में भोजन खाता है 

चिंता में ही सो जाता है 

उसे भी नीला आकाश दिखायी नहीं देता 

हज़ार नेमतें दिखाई नहीं देतीं 

परिजन व आसपास के लोग दिखाई नहीं देते 

बस स्वार्थ सिद्धि में लगा रहता है 

तब आदमी चिड़िया से भी छोटा लगता है 


शुक्रवार, सितंबर 16

आसमान में तिरते बादल

आसमान में तिरते बादल

खुली हवा में शावक बनकर
दौड़ लगाते क्यों न जीयें,
एक बार फिर बन के बच्चे
वर्षा की बूंदों को पीयें !

नाव चलायें पानी में इक
इक्कड़-दुक्कड़ भी खेलें,
आसमान में तिरते बादल
देख-देख हर्षित हो लें !

तोड़ के सारे बंधन झूठे
नजर मिलाएं मुक्त गगन से,
मन को जिन पहरों ने बांधा
उन्हें जला दें प्रीत अगन से !

थोड़े से हों नियम-कायदे
निजता का हो वरण सदा,
मीत बना लें सारे जग को
सीखें शिशु से यही अदा !