गुरुवार, सितंबर 12

सच से नाता तोड़ लिया जब

सच से नाता तोड़ लिया जब

शब्दों में ताक़त होती है 

शब्द अगर सच कहना जानें,

धरती ज्यों सहती आयी है 

संतानें भी सहना जानें !


माटी, जल में विष घोला है 

पनप रही यहाँ  लोभ संस्कृति, 

खनन किया, वन जंगल काटे 

 आयी बुद्धि में भीषण विकृति !


युद्धों के पीछे पागल है 

दीवाना मानव क्या चाहे, 

शिशुओं की मुस्कानें छीनीं 

 रहीं अनसुनी माँ की आहें !


कहीं सुरक्षित नहीं नारियाँ 

वहशी हुआ समाज आज है, 

अनसूया-गार्गी  की धरती 

भयावहता  का क्यों राज है !


कहाँ ग़लत हो गयी नीतियाँ 

भुला दिये सब सबक़ प्रेम के, 

अपना स्वार्थ सधे कैसे भी 

शेष रहें हैं मार्ग नर्क के !


टूट रहे परिवार, किंतु है 

सीमाओं में जकड़ा मानव !

सच से नाता तोड़ लिया जब  

जागा भीतर सोया दानव !


12 टिप्‍पणियां:

  1. समसामयिक विकृत परिदृश्यों का विचारणीय चित्रण।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. सटीक। और सत्य। कटु सत्य। जब तक कोई जाग नहीं जाता, हमें आवाज देते रहना होगा।

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  3. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  4. कहीं सुरक्षित नहीं नारियाँ

    वहशी हुआ समाज आज है,

    अनसूया-गार्गी की धरती

    भयावहता का क्यों राज है !
    बहुत सटीक एवं लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं