बुधवार, सितंबर 18

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा 

कान्हा गये गोकुल छोड़ 

उसके अगले दिन 

सुबह सूरज के जगने से पूर्व 

जग गई थीं आँखें 

तकतीं सूनी राह 

लकीरें खींचते स्वचालित हाथ 

फिर एक बार, बस एक बार 

तुम आओगे ? शायद तुम आओ 

कानों में मधुरिमा घोलती आवाज़ 

कागा की !

जैसे राधा का तन-मन 

बस उस एक आहट का प्यासा हो 

युगों से, युगों-युगों से 

उठे नयन उस ओर, हुए नम 

एकाएक प्रकट हुआ वह 

हाँ, वही था 

फिर हो गया लुप्त 

संभवतः दिया आश्वासन 

यहीं हूँ मैं !

यह यमुना, कदंब और बांसुरी 

अनोखे उपहार उसके 

हँस दीं आँखें राधा की 

विभोर मन, पागल होती वह 

संसार पाकर भी नहीं पाता 

और आँखें ढूँढ निकलती हैं 

स्वप्न ! सुनहरे-रूपहले स्वप्न 

जिन्हें सच होना ही है 

वे सच होंगे, प्रतीक्षा रंग लाएगी 

सूरज आएगा, धरती पीछे 

रचे जाएँगे गीत 

नये, अप्रतिम, अछूते 

हर युग में ! 


10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. मन में कान्हा का परें अजर अमर रहे तो भाव जागते ही हैं ...

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