सत्य-असत्य
असत्य की हल्की सी रेखा भी
सत्य के हिमालय को छुपा देती है
जैसे आँख में पड़ा धूल का एक कण
विस्तीर्ण गगन को
चाह की एक हल्की सी चिंगारी भी
मन के चैन को जला देती है
जैसे विष की एक बूँद
सारे कूप को बना देती है विषैला
उसके पास जाना हो
तो निर्मल रखना होगा मन को
दानवों का अधिकार हो जाता है
यदि कपट हो ह्रदय में
निःस्वार्थ, निष्पाप और निर्द्वंद्व
ही मिल सकता है
उस निसंग, निरंजन से
और तब शांति की अजस्र धाराएँ
चारों ओर से
दौड़ी चली आती हैं
उग आते हैं पुष्प उद्यान, मन प्रांगण में
और गूंजने लगती है सरगम श्वासों में
सत्य की ही विजय होती है
असत्य तो पहले से ही पराजित है
चिर पराजित !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 29 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
हटाएंकाश सब लोग ये बात समझ पाते।
जवाब देंहटाएंजी, स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंइस विश्वास पर दुनिया टिकी है । बहुत सुंदर। नमस्ते।
जवाब देंहटाएंसही कह रही हैं आप, नमस्ते !
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