यात्रा
मन के पार
एक अजाना लोक छिपा है
जहाँ से रह-रह कर
आहट आती है शांति की
गूँज सुनायी देती है
किसी अन्य काल की
यात्री को आगे बढ़ना है
और आगे
जिसने अनंत को चुन लिया
फिर विश्राम कैसा
स्वयं के अप्रतिम रूप से
अपरिचय कैसा
अपने घर लौटने में संकोच कैसा
सहेजने में अपनी विरासत को
गुरेज़ कैसा
माँ के चरणों में बैठने से
हम क्यों चूक जायें
पिता के स्नेह पर हम क्यों न
अपना अधिकार जतायें
जो शाश्वत है उससे क्यों न नाता जोड़ें
माया में बंधकर ख़ुद से मुख मोड़ें
अनमोल हीरे हमने छिपाये है
व्यर्थ पत्थरों को ख़रीद लाये हैं
जब जागो, तभी सवेरा है
उस का तो लगता हर घड़ी फेरा है !
अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा...भ्रमण से होने वाले लाभ अनेक हैं...🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
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