शुक्रवार, अक्तूबर 4

नारी भारत की


नवरात्रि के पावन अवसर पर नारी शक्ति को समर्पित


नारी भारत की

आँखों में निज ऊर्जा की पहचान लिए 

आगे बढ़ते जाने का अरमान लिए, 

अधरों पर नवल विजय की मुस्कान लिए 

नारी भारत की आशा की ख़ान लिए !


रोक सके ना कोई बाधा अब इसको 

वह सबला है जग कहता अबला जिसको, 

नहीं चाहिए अब गहनों का कारावास 

उसे चाहिए खुली धरा खुला आकाश !


न सुंदर वस्त्र न ही लुभाते राजमहल 

उतर पड़ी है करने हर कठिनाई हल, 

वह ख़ुद की ताक़त को पहचान चुकी है 

इस दुनिया की लघुता को जान चुकी है !


जो अब तक बस नीर बहाती है आयी 

बेवजह अपनी अस्मिता गँवाती आयी, 

जिसने सपनों को सदा बिलखते देखा 

वह अब उनको साकार बनाने आयी !


नहीं रुकेंगे इन कदमों को बढ़ने दो 

जग महकेगा, हाथों से  संवरने दो, 

उसे मान दो, उसे चाह सिर्फ़ स्नेह की 

हक़ है उसका समानता का अधिकार दो !





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