आसमान में तिरते बादल
खुली हवा में शावक बनकर
दौड़ लगाते क्यों न जीयें,
एक बार फिर बन के बच्चे
वर्षा की बूंदों को पीयें !
नाव चलायें पानी में इक
इक्कड़-दुक्कड़ भी खेलें,
आसमान में तिरते बादल
देख-देख हर्षित हो लें !
तोड़ के सारे बंधन झूठे
नजर मिलाएं मुक्त गगन से,
मन को जिन पहरों ने बांधा
उन्हें जला दें प्रीत अगन से !
थोड़े से हों नियम-कायदे
निजता का हो वरण सदा,
मीत बना लें सारे जग को
सीखें शिशु से यही अदा !
बहुत खुबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंकितना सहज-सरल हो जायेगा जीवन!
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