भीतर रस का स्रोत बहेगा
छा जाएं जब भी बाधाएं
श्रद्धा का इक दीप जला लें,
दुर्गम पथ भी सरल बनेगा
जिसके कोमल उजियाले में !
एक ज्योति विश्वास की अटल
अंतर्मन में रहे प्रज्ज्वलित,
जीवन पथ को उजियारा कर
कटे यात्रा होकर प्रमुदित !
कोई साथ सदा है अपने
भाव यदि यही प्रबल रहेगा,
दुख-पीड़ा के गहन क्षणों में
भीतर रस का स्रोत बहेगा !
श्रद्धालु ही स्वयं को जाने
कैसे उससे डोर बँधी है,
भटक रहा था अंधकार में
अब भीतर रोशनी घटी है !
जिसने भी यह सृष्टि रचाई
दिल का इससे क्या है नाता,
एक भरोसा, एक आसरा
जीवन में अद्भुत बल भरता !