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शुक्रवार, मई 28

भीतर रस का स्रोत बहेगा

भीतर रस का स्रोत बहेगा 


छा जाएं जब भी बाधाएं 

श्रद्धा का इक दीप जला लें, 

दुर्गम पथ भी सरल बनेगा

जिसके कोमल उजियाले में !


एक ज्योति विश्वास की अटल  

अंतर्मन में रहे प्रज्ज्वलित, 

जीवन पथ को उजियारा कर 

कटे यात्रा होकर प्रमुदित !


कोई साथ सदा है अपने 

भाव यदि यही प्रबल रहेगा, 

दुख-पीड़ा के गहन क्षणों में 

भीतर रस का स्रोत बहेगा !


श्रद्धालु ही स्वयं को जाने 

कैसे उससे डोर बँधी है,

भटक रहा था अंधकार में 

अब भीतर रोशनी घटी है !


जिसने भी यह सृष्टि रचाई 

दिल का इससे क्या है नाता,

एक भरोसा, एक आसरा

जीवन में अद्भुत बल भरता !

 

शुक्रवार, फ़रवरी 3

भीतर जल ताजा है


भीतर जल ताजा है



माना कि जिंदगी संघर्ष है
कई खतरनाक मोड़ अचानक आते हैं
कभी इसको तो कभी उसको हम मनाते हैं
भीतर कहीं गहराई में जिंदगी बहती है
दू.....र टिमटिमाती गाँव की रोशनी की तरह....
ऊपर-ऊपर सब सूखा है, धुंध, धूल, हवा से ढका
आंधियों से घिरा
पर भीतर जल ताजा है
स्वच्छ, अदेखा, अस्पर्श्य, अछूता
माना कि अभी पहुँच नहीं वहाँ तक
उसकी ठंडक महसूस होती तो है 
शिराओं में...
उस धारा को बना कर नहर ऊपर लाना है
जो दिखता है दूर उसे निकटतम बनाना है !