शुक्रवार, मई 28

भीतर रस का स्रोत बहेगा

भीतर रस का स्रोत बहेगा 


छा जाएं जब भी बाधाएं 

श्रद्धा का इक दीप जला लें, 

दुर्गम पथ भी सरल बनेगा

जिसके कोमल उजियाले में !


एक ज्योति विश्वास की अटल  

अंतर्मन में रहे प्रज्ज्वलित, 

जीवन पथ को उजियारा कर 

कटे यात्रा होकर प्रमुदित !


कोई साथ सदा है अपने 

भाव यदि यही प्रबल रहेगा, 

दुख-पीड़ा के गहन क्षणों में 

भीतर रस का स्रोत बहेगा !


श्रद्धालु ही स्वयं को जाने 

कैसे उससे डोर बँधी है,

भटक रहा था अंधकार में 

अब भीतर रोशनी घटी है !


जिसने भी यह सृष्टि रचाई 

दिल का इससे क्या है नाता,

एक भरोसा, एक आसरा

जीवन में अद्भुत बल भरता !

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29 -5-21) को "वो सुबह कभी तो आएगी..."(4080) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. एक भरोसा, एक आसरा
    जीवन में अद्भुत बल भरता !
    सच, उसी आसरे की डोर थामे चलते चले जा रहे हैं। एक अदृश्य शक्ति कहती है, घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूँ।

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  3. जिसने भी यह सृष्टि रचाई

    दिल का इससे क्या है नाता,

    एक भरोसा, एक आसरा

    जीवन में अद्भुत बल भरता ! प्रभावी रचना।

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  4. बहुत सुंदर भीतर रस का स्रोत बहेगा

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  5. बहुत प्यारी रचना है , सुंदर शब्दों का चयन सुंदर भाव।

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  6. जीवन में उस अदृश्य सहारे की बहुत जरूरत है,को जीवन नैया को पार लगता है,और जो आत्मा में विराजमान है, सुन्दर रचना ।

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  7. कोई साथ सदा है अपने
    भाव यदि यही प्रबल रहेगा,
    दुख-पीड़ा के गहन क्षणों में
    भीतर रस का स्रोत बहेगा !
    वाह...बहुत सुन्दर भाव💕

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  8. बहुत सुन्दर ... श्रद्धा हो मन में तो स्विकारिता वैसे ही बढ़ जाती है ...
    लाजवाब रचना ...

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  9. जिज्ञासा जी, उषा जी, दिगम्बर जी व अनिता जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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