बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम
बरस रहा है कोई अविरत
झर-झर झर-झर, झर-झर झर-झर
भीग रहा न कोई लेकिन
ढूँढे जाता सरवर, पोखर !
प्रीत गगरिया छलक रही है
युगों-युगों से सर-सर सर-सर,
प्यासे कंठ न पीते लेकिन
अकुलाये से खोजें निर्झर !
ज्योति कोई जले निरंतर
बहे उजाला मद्धिम-मद्धिम,
राह टटोले नहीं मिले पर
अंधकार में टकराते हम !
राह टटोले नहीं मिले पर
जवाब देंहटाएंअंधकार में टकराते हम !
सुन्दर !
अभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
अति सुन्दर भाव की सशक्त रचना गीतात्मक प्रस्तुति भाव की राग सदृश्य।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
प्रीत गगरिया छलक रही है
जवाब देंहटाएंऔर भींग रहा है तन-मन..
अति सुन्दर..
कालीपद जी, वीरू भाई, अनु जी व अमृता जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं