अट्टाहस बन गूंजे
गुनगुनी सी साधना छोड़ें आज धधकने दें ज्वाला,
प्यास कुनकुनी प्यास ही नहीं आज छलकने दें प्याला !
भीतर छिपी अनंत शक्तियाँ प्रभु का अकूत खजाना
जितना चाहें उसे उलीचें खत्म न होगा आना !
तीन गुणों में डोल रहे हम जन्मों से दीवाने
कभी ज्ञान के पुतले बनते कभी बने अनजाने !
ऊपर उठ के खुद में आयें जीवन को खिलने दें
जन्म उसे दें जो भीतर है खुद से खुद मिलने दें !
आज उठें, छलांग लगाएं बहुत हुआ है इंतजार अब
आस पास की हवा बदल दें जागेगा जन-जन कब !
गूंज उठे कण-कण तन-मन का ऊर्जा की गुंजार उठे
कोष-कोष में सोया जो अब जागेगा पुकार उठे !
पुलक बने, कभी हास्य अनोखा, अट्टाहस बन गूंजे
शक्ति अपार भरी जो भीतर मधुर हास बन गूंजे !
कर्मठता के बीज उगायें श्रम के जल से सींचें
हाथ बढ़ें, गिरतों को उठायें, न रहें मुट्ठियाँ भींचे !
देवत्व जगे, है सोया जो जाने कब से भीतर
लिये गर्भ में उसे ढो रहे भार बना जो अंतर !
बिखरे, बहे, फ़ैल जाये वह सृष्टि के कण-कण में
आज चेतना की चिंगारी फूट पड़े जन जन में !
अब बातों का समय नहीं काम करें हम डटकर
वही बचेगा इस युग में जो न बैठा थक कर !
और नहीं तो उतरें-चढ़ें सीढियाँ ही जीने की
फूल उगायें, पतंग उड़ायें वजह तो हो जीने की !
अनिता निहालानी
१७ जनवरी २०११
अनीता जी,
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ...आपके ब्लॉग पर आकर शब्द ही नहीं मिलते......बस यूँ समझ लीजिये की टिप्पणी के माध्यम से शब्दों का सहारा लेकर सिर्फ अपनी उपस्तिथि ही दर्ज करवा पता हूँ......आपकी रचनाएँ जिस ऊँचाई को छूती हैं उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.....सिर्फ महसूस किया जा सकता है|
कर्मठता के बीज उगायें श्रम के जल से सींचें
जवाब देंहटाएंहाथ बढ़ें, गिरतों को उठायें, न रहें मुट्ठियाँ भींचे !
बहुत प्रेरक प्रस्तुति...
कर्मठता के बीज उगायें श्रम के जल से सींचें
जवाब देंहटाएंहाथ बढ़ें, गिरतों को उठायें, न रहें मुट्ठियाँ भींचे !
देवत्व जगे, है सोया जो जाने कब से भीतर
लिये गर्भ में उसे ढो रहे भार बना जो अंतर
प्रेरणादायक रचना ...बहुत सुन्दर
कर्मठता के बीज उगायें श्रम के जल से सींचें
जवाब देंहटाएंहाथ बढ़ें, गिरतों को उठायें, न रहें मुट्ठियाँ भींचे !
कर्म का मार्ग दिखाती हुई सुंदर रचना -
शुभकामनायें
और नहीं तो उतरें-चढ़ें सीढियाँ ही जीने की फूल उगायें, पतंग उड़ायें वजह तो हो जीने की !---यहीं से शुरूवात करनी होगी.हरेक के स्तर की बात कह दी तुमने.
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों की बेहतरीन शैली ।
जवाब देंहटाएंभावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
कर्मठता के बीज उगायें श्रम के जल से सींचें
जवाब देंहटाएंहाथ बढ़ें, गिरतों को उठायें, न रहें मुट्ठियाँ भींचे
बहुत सुंदर और प्रभावी भावभिव्यक्ति.....
और नहीं तो उतरें-चढ़ें सीढियाँ ही जीने की
जवाब देंहटाएंफूल उगायें, पतंग उड़ायें वजह तो हो जीने की !
बहुत ही सुन्दर और आध्यात्मिक रचना! आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज होता है!
हौसलाअफ़ज़ाई के लिये आप सभी का शुक्रिया तथा आमन्त्रण !
जवाब देंहटाएंवज़ह तो हो जीने की ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक और अंतस को जगाने में सक्षम रचना |
अब बातों का समय नहीं काम करें हम डटकर
जवाब देंहटाएंवही बचेगा इस युग में जो न बैठा थक कर !
आपके ब्लॉग पर पहली हाज़िरी है...
बहुत अच्छी रचना लगी...
बधाई.
bouth aache likha aapne..
जवाब देंहटाएंMusic Bol
Lyrics Mantra
विचारणीय,सराहनीय ,सुन्दर, प्रेममयी कोमल भावों और शब्दों से सजी प्रस्तुति
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