इस जहाँ में नारियां
प्रेम सुरभि से धरा के, सकल कण-कण को भिगोतीं
ज्यों हों केसर क्यारियाँ, इस जहाँ में नारियाँ !
कोख में धरती सरिस, स्वप्न संतति का संजोतीं
रोपतीं फुलवारियां, इस जहाँ में नारियाँ !
बालमन को पंख देतीं, स्नेह का साया युवा को
प्रीत की पिचकारियाँ, इस जहाँ में नारियाँ !
छोड़ कर झूठा अहं, संस्कृति को दिशा देतीं
झेलतीं दुश्वारियाँ, इस जहाँ में नारियाँ !
अनिता निहालानी
८ मार्च २०११
'नारी बिना अनारी नर '
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर नारी शक्ति को नमन .......एक भी दिवस शुभ नहीं हो सकता नारी के बिना
बेहतरीन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें'
कोख में धरती सरिस, स्वप्न संतति का संजोतीं
जवाब देंहटाएंरोपतीं फुलवारियां, इस जहाँ में नारियाँ !
bahut hi sarthak tulna aur prabhawi sampreshan. Badhaai
हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं"कोख में धरती सरिस, स्वप्न संतति का
जवाब देंहटाएंसंजोतीं रोपतीं फुलवारियां, इस जहाँ में नारियाँ!"
नारी को परिभाषित करती महिला दिवस पर सुंदर प्रस्तुति. बधाई अनीता जी.
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर नारी सम्मान को समर्पित गीत न केवल सार्थक है बल्कि सरस भी है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं,
झेलतीं दुश्वारियाँ, इस जहाँ में नारियाँ....
जवाब देंहटाएंसच है ...शुभकामनायें ..
बहुत अच्छी रचना ! हार्दिक शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंhttp://indianwomanhasarrived.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंplease visit