उससे मिलन न क्योंकर होता
पोर-पोर में श्वास-श्वास में
नस-नस में हर रक्त के कण में,
गहराई तक भीतर मन में
छाया जो पूरे जीवन में !
उससे ही हम अनजाने हैं
दूरी उससे बढ़ती जाती,
जो खुद से भी निकट है प्रियतम
उससे आँख नहीं मिल पाती !
जिसके होने से ही हम हैं
उससे मिलन न क्योंकर होता,
जिससे कण-कण व्याप रहा है
उससे न मन प्रीत जोड़ता !
मन अस्थिर, अस्थिर ही रहता
घबराया सा, रहे कांपता !
बन आकांक्षी यश मान का
या सुविधा के पीछे जाता !
बचा बचा कर रखता तन को
बचा बचा कर रखता धन को,
दोनों ही कुछ दिन के साथी
समझ न आता भोले मन को !
दोनों ही कुछ दिन के साथी
जवाब देंहटाएंसमझ न आता भोले मन को !
बहुत सही बात ..झकझोरती है मन को ....
sunder abhivyakti ..
उससे ही हम अनजाने हैं
जवाब देंहटाएंदूरी उससे बढ़ती जाती,
जो खुद से भी निकट है प्रियतम
उससे आँख नहीं मिल पाती !
बेहतरीन पंक्तियाँ हैं.
सादर
मन अस्थिर, अस्थिर ही रहता
जवाब देंहटाएंघबराया सा, रहे कांपता !
बन आकांक्षी यश मान का
या सुविधा के पीछे जाता !
बचा बचा कर रखता तन को
बचा बचा कर रखता धन को,
दोनों ही कुछ दिन के साथी
समझ न आता भोले मन को !
बहुत ही सच और यतार्थ को दर्शाती ये पंक्तियाँ लाजवाब हैं |
उससे ही हम अनजाने हैं
जवाब देंहटाएंदूरी उससे बढ़ती जाती,
जो खुद से भी निकट है प्रियतम
उससे आँख नहीं मिल पाती !
behtreen
जिसके होने से ही हम हैं
जवाब देंहटाएंउससे मिलन न क्योंकर होता,
जिससे कण-कण व्याप रहा है
उससे न मन प्रीत जोड़ता !
बस यही तो समझ नहीं पाता आम इंसान ...अच्छी प्रस्तुति
गहन अभिव्यक्ति,खूबसूरत भावों के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंWaah ... Uttam Rachna.
जवाब देंहटाएंबचा बचा कर रखता तन को
जवाब देंहटाएंबचा बचा कर रखता धन को,
दोनों ही कुछ दिन के साथी
समझ न आता भोले मन को !
...गहन अहसास..सार्वभौमिक सत्य को उकेरती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जिसके होने से ही हम हैं
जवाब देंहटाएंउससे मिलन न क्योंकर होता,
जिससे कण-कण व्याप रहा है
उससे न मन प्रीत जोड़ता !
सुंदर पंक्तियां...
बचा बचा कर रखता तन को
जवाब देंहटाएंबचा बचा कर रखता धन को,
दोनों ही कुछ दिन के साथी
समझ न आता भोले मन को !...सुंदर पंक्तियां...