वैरी भी उन्हें नहीं मिला है
तृषा तुम्हारी शांत हुई है
पनघट पर कोई प्यासा भी,
तृप्ति के तुम गीत गा रहे
क्षुधा शेष है अभी किसी की !
मंजिल तक तुम पहुंच चुके हो
पीछे लेकिन पंक्ति बड़ी है,
मुड़ कर जरा निहारो उनको
जिनकी आशा अभी बड़ी है !
चाँद तुम्हें निकट लगता है
घिरा कहीं है अभी अँधेरा,
बिखरी होंगी स्वर्ण रश्मियाँ
मिला किसी को नहीं सवेरा !
हो समर्थ पर यह न भूलो
कितनों की आशीष मिली थी,
किसी ने पथ के कंटक बीने
अश्रु की कहीं नमी खिली थी !
अमर प्रेम की गाथा लिखते
बैरी भी उन्हे नहीं मिला है,
गीत स्वर्ग के गाते हो तुम
अभी-अभी तो नर्क मिला है !
मंजिल तक तुम पहुंच चुके हो
जवाब देंहटाएंपीछे लेकिन पंक्ति बड़ी है,
प्रभावी पंक्तियाँ ,जितनी तारीफ करूं कम है...
गीत स्वर्ग के गाते हो तुम
जवाब देंहटाएंअभी-अभी तो नर्क मिला है !
बहुत सारगर्भित और प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
सुन्दर-प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई ||
हो समर्थ पर यह न भूलो
जवाब देंहटाएंकितनों की आशीष मिली थी,
किसी ने पथ के कंटक बीने
अश्रु की कहीं नमी खिली थी !
यही याद हमें विनम्र रखती है ...और दूसरों को राह दिखने में सहायक भी होती है ..बहुत सुन्दर रचना अनीता जी ..बढ़ाई हो आपको
बहुत खूब ..........शानदार .......आभी-अभी तो नरक मिला है ....वाह|
जवाब देंहटाएंइस कविता में निहित द्वन्द्व मन को स्पंदित करता है।
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