तुम
मैंने जान लिया है कि
दीपक की लौ को तुमने
हाथों से ओट दी है
आँधियों की परवाह न करते हुए
मुझे उसमें तेल डालते रहना है !
हृदय को मुक्त रखना है भय से
क्योंकि एक अदृश्य घेरा
बनाया है तुमने चारों ओर !
भीतर बाहर मुझे एक सा होना है
क्योंकि तुम कभी गहरे उतर
जाते हो
तकने लगते हो आकर सम्मुख
कभी अचानक !
बहुत सुन्दर -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत ही गहन और सुन्दर भाव |
जवाब देंहटाएंभीतर बाहर मुझे एक सा होना है
जवाब देंहटाएंक्योंकि तुम कभी गहरे उतर जाते हो
तकने लगते हो आकर सम्मुख
कभी अचानक !
सुन्दर अभिव्यक्ति...
सच्ची और गहरी....
बहुत ही गहन भाव की सुंदर प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति..मेरी नई पोस्ट 'आमा' में आप का स्वगत है..
जवाब देंहटाएंये जानना भी कितना सुखद है.. बस कभी भूल हावी न हो..
जवाब देंहटाएंरविकर जी, रंजना जी, माहेश्वरी जी, अमृता जी, पूनम जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
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