नेता और नाता 
नेता का जनता से अटूट नाता है 
पर कोई बिरला ही इसे निभाता है 
जनता ने उसे चुना 
अपनी आवाज बनाया 
निश्चिन्त हो गयी 
अपने स्वप्नों को उसे सौंप
पर नेता का नाता 
टूट गया जनता से उसी वक्त 
जब उसे राज सिंहासन दिखा 
सत्ता पर विराजते ही 
शोर प्रतीत होने लगी
 जनता की पुकार
स्वर भर लिए चाटुकारों के 
अपने कानों में उसने
उड़ने लगा आकाश में 
सुख-सुविधाओं का चश्मा लगाये आँखों पर
जनता, जो पहले उसके पीछे चलती थी 
बुलेट प्रूफ शीशों के पीछे धकेल दी गयी  
किसी और नेता की प्रतीक्षा में 
बैठी है फिर आँखें बिछाए जनता...

 
बढ़िया है आदरेया
जवाब देंहटाएंआभार-
सच कहा
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा...
जवाब देंहटाएं'नेता' ...ये क़यामत है...
जवाब देंहटाएंरविकर जी, माहेश्वरी जी, व ओंकार जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच । सत्ता के लोलुप नेता इसे पाते ही सब नाते भूल जाते हैं |
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