बहने दो
बहने दो पावन रसधार, मत रोको !
झरने दो सजल अश्रुधार, मत टोको
माना मन परिचित है बंधन से
डरता है अनहद की गुंजन से
खिलने दो अन्तस् की डार, मत रोको !
भरने दो फागुनी बयार, मत टोको !
माना मन स्वप्नों में खोया है
अनजाने रस्तों पर रोया है
छाने दो सहज प्यार, मत रोको !
खुलने दो मनस द्वार, मत टोको !
सुनने दो कर्णों को प्रकृति की भाषा
गिर जाय जन्मों से बाँध रही आशा
कुछ न शेष रहने दो, मत रोको !
जीवन को कहने दो, मत टोको !
....खुले हृदय के द्वार ॥
जवाब देंहटाएंऔर चले फाल्गुनी बयार ...
बहुत सुंदर रचना ...!!
जीवन बहुत कुछ कहना चाहती है जिसे अंतर मन से सुनना जरुरी है
जवाब देंहटाएंबांधने की बजाय मुक्त होना जरुरी है
सादर !
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबस बहने दो ...अति सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंजीवन को कहने दो, मत टोको ! bahut sunder......
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ ..एक बार यहाँ भी आयें और अवलोकन करें, धन्यवाद।
बहने दो पावन रसधार, मत रोको !
जवाब देंहटाएंझरने दो नयनों से अश्रुधार, मत टोको
माना मन का परिचय है बंधन से
डरता है अनहद की गुंजन से
खिलने दो अन्तस् की डार, मत रोको !
भरने दो भीतर फागुनी बयार, मत टोको !
माना मन स्वप्नों में खोया है
अनजाने रस्तों पर रोया है
छाने दो प्रियतम का प्यार, मत रोको !
खुलने दो अंतर का द्वार, मत टोको !
सुनने दो कानों को कुदरत की भाषा
गिर जाये जन्मों से बाँध रही आशा
कुछ भी न रहने दो, मत रोको !
जीवन को कहने दो, मत टोको !
झरने सा सहज प्रवाह लिए है यह रचना प्रेम की रसधार और नेह निमंत्रण भी। आभार आपकी निरंतर टिप्पणियों का।
खुबसूरत रचना.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर वेगवती निर्झर सी बहती जाती कलकल रचना
जवाब देंहटाएंबहने दो पावन रसधार, मत रोको !
झरने दो नयनों से अश्रुधार, मत टोको
माना मन का परिचय है बंधन से
डरता है अनहद की गुंजन से
खिलने दो अन्तस् की डार, मत रोको !
भरने दो भीतर फागुनी बयार, मत टोको !
माना मन स्वप्नों में खोया है
अनजाने रस्तों पर रोया है
छाने दो प्रियतम का प्यार, मत रोको !
खुलने दो अंतर का द्वार, मत टोको !
सुनने दो कानों को कुदरत की भाषा
गिर जाये जन्मों से बाँध रही आशा
कुछ भी न रहने दो, मत रोको !
जीवन को कहने दो, मत टोको
अनुपमा जी, शिवनाथ जी, माहेश्वरी जी, वीरू भाई, अमृता जी, सुषमा जी, ललित जी, मृदुला जी, ओंकार जी, राकेश जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंवाह ! कहीं थम न जाये टोकने से ..... बहने दो ...
जवाब देंहटाएं