झुका समपर्ण में जब मस्तक
सैकत पर लहरें सागर की
छोड़ चलीं ज्यों सीपी, शंख
उर के इस खाली दर्पण पर
स्मृतियों की बह गयी तरंग !
सेतु बनाया उन सुधियों को
सृजन किया इक भावालोक,
आवाहन कर प्राण प्रिय का
रचा महावर मिटाया शोक !
सुषमा अतुलित सुरति सुभग है
सिंहावलोकन भी आवश्यक,
तब तब प्राण हुए आलोड़ित
झुका समपर्ण में जब मस्तक !
सुन्दर भाव ,सुन्दर भाषा |
जवाब देंहटाएंकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
सुन्दर शब्दों में रहस्यात्मक अनुभूति - छायावादी युग याद आ गया !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन … अद्भुत भाव
जवाब देंहटाएंयशोदा जी, कालीपद जी, प्रतिभा जी व संध्या जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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