जहाँ मौसम बदलते नहीं
जहाँ कोई नहीं दूसरा
एक ऐसा भी देश है
जो नहीं धारण किया जाता प्रदर्शन के लिए
एक ऐसा भी वेश है
जहाँ टूट जाती हैं सब बेड़ियाँ
छूट जाती हैं रागात्मक छवियाँ
एक ऐसा भी प्रदेश है
जहाँ ठहर जाता है काल का रथ
ध्वनि का होता नहीं प्रवेश है
जहाँ नहीं कोई विरोध
जन्म लेती नहीं कोई कुंठा
कोई विडम्बना भी नहीं सताती
जहाँ दो न रहने से कोई स्मृति भी नहीं रह जाती
जहाँ खो जाती है अपनी छाया भी
नितांत एकांत ही जिसका होना है
एक ऐसा भी आदेश है
जहाँ मौसम बदलते नहीं पल-पल
जहाँ वसंत पतझड़ के आने की आहट नहीं देता
जहाँ बिन बरसे बादल कभी गुजरा ही नहीं
जहाँ नित एक रस मधुरता छायी है
जिसमें होना विपदा का मानो विदेश है
जहाँ निर्धूम अग्नि जलती है
ज्योति की अखंड शिला पल-पल
पिघलती है
जहाँ कोई मार्ग नजर नहीं आता
पर मंजिल हर कदम पर मिलती है
ऐसा भी एक स्वदेश है
ऐसा भी एक स्वदेश है
जाना जहाँ संकट के मार्ग से गुजरना है
जहाँ टिकना तलवार की धार पर चलना है
जो स्वयं को खो कर ही जाना
जाता है
एक ऐसा भी महेश है !
बहुत ही सुंदर लेखन व रचना , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
स्वागत व आभार आशीष जी !
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउस महेश की ,उस प्रदेश की , उस वेष की और दुर्दम आदेश की कल्पना ही दुर्निवार है - इस दुनिया का कुछ भी नहीं वहाँ -नितान्त अपरिचित और अचल !!
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सही कहा है प्रतिभा जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंकल 13/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !