मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा
काँटों को भी हार बनाना होगा !
चाहे जितनी हों बाधाएँ
मंजिल मिल-मिल कर खो जाये,
अंगारों से द्वार सजाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
मुस्कानों का भ्रम न पालें
महा रुदन का अमृत ढालें
मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
सुख भरमाता आया जग को
छलता आया है हर पग को,
दुःख का उर को गरल पिलाना
होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
सच से आँखें मूंदे बैठे
अंधों बहरों को इस जग में
शंखनाद का रोर सुनाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
सुख की बात करें क्या उनसे
दुःख की जो चादर ओढ़े हैं,
करुणा का इक राग बहाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
तमस छा रहा हो जब जग में
अंधकार खड़ा हो मग में,
ज्योति पर अधिकार जताना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
बहुत सुन्दर भावों से रचाई है ये रचना....बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव । हमारे चिन्तन व दर्शन का मूल यही स्वर है ।
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंलयबद्ध और सार्थक भाव लिए सुन्दर रचना...
सादर
अनु
आशा विश्वास और स्वयं पे भरोसा रखने और आत्मविश्वास पैदा करती हुयी ओजस्वी रचना ....
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जवाब देंहटाएंमुस्कानों का भ्रम न पालें
महा रुदन का अमृत ढालें
मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !
सशक्त ज्ञेय (गेय )अभिव्यक्ति
संजय जी, अनु जी, दिगम्बर जी,वीरू भाई और गिरिजा जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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