कोष भरे अनंत प्रीत के
पलकों
में जो बंद ख्वाब हैं
पर
उनको लग जाने भी दो,
एक
हास जो छुपा है भीतर
अधरों
पर मुस्काने तो दो !
सारा
जगत राह तकता है
तुमसे
एक तुम्हीं हो सकते,
होंगे
अनगिन तारे नभ पर
चमक
नयन में तुम ही भरते !
कोष
भरे अनंत प्रीत के
स्रोत
छुपाये हो अंतर में,
बह
जाने दो उर के मोती
भाव
सरि के संग नजर से !
जहाँ
पड़ेगी दृष्टि अनुपम
उपवन
महकेंगे देवों के,
स्वयं
होकर तृप्ति का सागर
कण-कण
में निर्झर भावों के !
बहुत सुन्दर ...भावों भरी सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी व संगीता जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंहाँ, एक तुम्हीं से तो !
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