एक नगमा जिन्दगी का
एक दरिया
या समन्दर
बह रहा जो प्रीत बनकर,
बाँध मत बाँधें तटों पर
उमग जाये छलछलाकर !
एक प्यारी सी हँसी भी
कैद है जो कन्दरा में,
कसमसाती खुदबुदाती
बिखर जाएगी जहाँ में !
एक नगमा जिन्दगी का
शायराना इक फसाना,
दिलोबगिया में दबा जो
बीज महके बन तराना !
एक जागी रात आये
ख्वाब नयनों में सजाये,
दूर से आती सदा को
ला निकट कुहु गीत गाये !
एक नर्तन आत्मा का
ढोल की थापें अनूठी,
बाल दे अनुपम उजाला
बाँसुरी, वीणा की
ज्योति
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.3.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2924 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरु अंगद देव और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
हटाएंएक नर्तन आत्मा का
जवाब देंहटाएंढोल की थापें अनूठी,
बाल दे अनुपम उजाला
बाँसुरी, वीणा की ज्योति
...सच में आत्मिक आनंद ही जीवन की खुशियों का मूल मंत्र है...बहुत मनभावन प्रस्तुति...
सही कहा है आपने कैलाश जी, स्वयं के भीतर जाकर ही परमात्मा की झलक मिलती है..स्वागत व आभार !
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार गगन जी !
हटाएंसच है ज़िंदगी का असल नग़मा तो यही है ... प्राकृति में छुपा ... समुन्दर की लहरों में झूमता आत्मा में उतरता पवन से गुंजित गीत ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावनात्मक गीत ...
सुस्वागतम दिगम्बर जी !
हटाएंबहुत बहुत आभार ध्रुव जी !
जवाब देंहटाएंएक नर्तन आत्मा का
जवाब देंहटाएंढोल की थापें अनूठी,
बाल दे अनुपम उजाला
बाँसुरी, वीणा की ज्योति!!!!!!!
बहुत सुंदर सुंदर प्रीत भरी रचना !!!!!!!!!!
स्वागत व आभार रेणु जी !
हटाएंआपका भाव सदा उसी ज्योति को बिखेरे । नमन आपको ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी ! इस बार बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ
हटाएंस्वागत व आभार ओंकार जी !
जवाब देंहटाएंसुंदर भावनात्मक गीत ...
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