वर्तमान का यह पल
घट रहा है जीवन अनंत-अनंत रूपों में
वर्तमान के इस छोटे से पल में
सूरज चमक रहा है इस क्षण भी
अपने पूरे वैभव के साथ आकाश में
गा रहे हैं पंछी.. जन्म ले रहा है कहीं, कोई नया शिशु
फूट रहे हैं अंकुर हजार बीजों में
गुजर रही है कोई रेलगाड़ी किसी सुदूर गांव से
निहार रही हैं आँखें क्षितिज को किसी किशोरी की जिसकी खिड़की से
वर्तमान का यह पल नए तारों के सृजन का साक्षी है
पृथ्वी घूम रही है तीव्र गति से सूर्य की परिक्रमा करती हुई
यह नन्हा क्षण समेटे है वह सब कुछ
जो घट सकता है कहीं भी, किसी भी काल खंड में
सताया जा रहा है कोई बच्चा
और दुलराया भी जा रहा हो
कोई वृक्ष उठाकर कन्धों पर ले जा रहे होंगे कुछ लोग
कहीं तोड़ रहे होंगे फल कुछ शरारती बच्चे
इसी क्षण में रात भी है गहरी नींद भी
स्वप्न भी, सुबह भी है भोर भी
जो जीना चाहे जीवन को उसकी गहराई में
जग जाए वह वर्तमान के इस पल में
जिसमें सेंध लगा लेता है अतीत का पछतावा
भविष्य की आकांक्षा, कोई स्वप्न या कोई चाह उर की
हर बार चूक जाता है जीवन जिए जाने से
हर दर्द जगाने आता है
कि टूट जाये नींद और जागे मन वर्तमान के इस क्षण में...
हम समय रहते जीते नहीं है जीवन को सही से।
जवाब देंहटाएंपर समय निकल जाए तो हम पल पल का पछतावा करते है।
जीवन हर जगह हर रूप में घट रहा है
कितने ही छोटे छोटे चित्र बन गए थे कविता को पढ़ते वक्त।
बहुत ही शानदार रचना है।
आपका नई रचना पर स्वागत है 👉👉 कविता
स्वागत व आभार !
हटाएंवर्तमान के पल को जो जी लेता है ... आनद में रहता है ...
जवाब देंहटाएंहर पल जो जीवित है उस्में कितना कुछ घट जाता है और इतिहास की यादों में बदल जाता है ... पर जीना तो वर्तमान में ही रहता है ... बहुत भाव पूर्ण रचना ... दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ....
आपको भी प्रकाश पर्व की शुभकामनायें !
हटाएंइसके असीम विस्तार को जितना अपने में समेट सकें उतना ही हमारे हिस्से में -यही जीवन है.
जवाब देंहटाएंवाह ! जीवन की कितनी सुंदर परिभाषा, स्वागत व आभार !
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