स्वप्न
स्वप्न टूटा, नींद टूटी, कर्म छूटे
स्वप्न जारी, नींद प्यारी, कर्म बंधन
स्वप्न में ही किले बनते और ढहते
स्वप्न में ही लोग हँसते और रोते
भय के बादल खूब बन-बन कर बरसते
कामनाओं के समंदर बहा करते
डूबते जिनमें कभी भँवरों में फँसते
पत्थरों से कभी टकरा चूर होते
कल्पनाओं में बने राजा चमकते
स्वप्न है यह जिंदगी कब देख पाते
स्वप्न में खो स्वयं ही नव रूप धरते
एक होकर भी अनेकों नजर आते
नींद गहरी यूँ लुभाती व सुलाती
जागकर भी उन्हीं गलियों में भटकते
कर्म हर होता तभी तक स्वप्न जब तक चल रहा है
नींद से जागे न जब तक स्वप्न तब तक चल रहा है
सच है जब तक स्वप्न रहता है लगता है जीवन वाही है ...
जवाब देंहटाएंजागते ही लगता है क्या हो गया ... सच क्या है माया तो नहीं उसकी ...
सच शायद माया के पीछे छिपा ही रहता है
हटाएंनींद से जागे परन्तु मोह से भागे नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंमोह भी तो एक तरह की नशीली नींद ही है न
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं