साँझा नभ साँझी है धरती
दोनों के पार वही दर्शन
जो दृश्य बना वह द्रष्टा है,
जल लहरों में सागर में भी
जो सृष्टि हुआ वह सृष्टा है !
हर दिल में इक दरिया बहता
क्यों दुइ की भाषा हम बोले,
साँझा नभ साँझी है धरती
इस सच को सुन क्यों ना डोलें !
नीले पर्वत पीली माटी
हरियाली की छाँव यहीं है !
तेरा मेरा नहीं सभी का
दूजा कोई जहान नहीं है,
हवा युगों से सबने बाँटी
तपिश धूप की, दावानल की,
जल का स्वाद कभी ना बदला
पीने वाला हो कोई भी !
सबको इक दिन जाना मरघट
और निभाना फर्ज एक सा,
किसकी खातिर युद्ध हो रहे
रिश्तों में है दर्द एक सा !
बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंश्रृष्टि और उसको बनाने वाला जब एकाकार हो जाये तो सब कुछ बराबर हो जाता है ... रिश्ते और उनका दर्द एक से हो जाये तो सब एक .... आलोकिक भाव लिए सुन्दर भावपूर्ण ...
सुंदर और त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार !
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 26 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी रचना की पंक्ति-
"हवा युगों से सबने बाँटी"
हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।
बहुत बहुत आभार !
हटाएंसबको इक दिन जाना मरघट
जवाब देंहटाएंऔर निभाना फर्ज एक सा,
किसकी खातिर युद्ध हो रहे
रिश्तों में है दर्द एक सा
बहुत खूबसूरत विचार आदरणीया अनिता जी
शुक्रिया मीना जी !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंदोनों के पार वही दर्शन
जवाब देंहटाएंजो दृश्य बना वह द्रष्टा है,
जल लहरों में सागर में भी
जो सृष्टि हुआ वह सृष्टा है
- बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ हैं । एक उत्कृष्ट सृजन हेतु साधुवाद आदरणीया अनीता जी ।
सनातन सच्चाई पर......!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसबको इक दिन जाना मरघट
जवाब देंहटाएंऔर निभाना फर्ज एक सा,
किसकी खातिर युद्ध हो रहे
रिश्तों में है दर्द एक सा !
वाह!!!
अद्भुत.... विचारणीय...।
स्वागत व आभार !
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