प्रार्थना
जो दिया है तूने हे प्रभु !
असीम है
नहीं समाता इस झोली में
तू दिए ही जाता है
तेरी अनुकम्पा की क्या कोई सीमा है ?
उदार मालिक द्वारा दिए गए अतिरिक्त धन की तरह
तू भरे जाता है संसार
मेरा मन झुका है तेरे कदमों में
बैठा नहीं जाता देर तक
दुखती है बूढ़ी हड्डियाँ
करवटें बदलते बीतती है रात
फिर भी जगाता है तू हर प्रभात
रखता है सिर पर अपना हाथ
मेरा मन डूब जाता है
आकाश की तरह विस्तृत उस आनंद में
जो तू बरसा ही रहा है
अनवरत !
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअच्छी कामना और धन्यवाद का सुन्दर संगम।
स्वागत व आभार !
हटाएंसुन्दर कृतज्ञता-ज्ञापन.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सरस
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