सिंधु से नाता जोड़ लें
नींद टूटे, स्मरण जागे
फिर खिल उठे मन का कमल
जो बन्द है मधु कोष बन
हो प्रकट वह शुभता अमल !
हम बिंदु हैं तो क्या हुआ
सिंधु से नाता जोड़ लें,
इक लपट ही हों आग की
रवि की तरफ मुख मोड़ लें !
अब शक्ति को पहचान निज
खिल कर उसे बह लेने दें,
जो सुप्त है कई जन्म से
हो व्यक्त सब कह लेने दें !
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-10-2020) को "न मैं चुप हूँ न गाता हूँ" (चर्चा अंक-3856) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
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"मीना भारद्वाज"
प्रभावशाली रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंअपनी सामर्थ्य को पहचान लेना बहुत बड़ी बात है.
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंउम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअब शक्ति को पहचान निज
जवाब देंहटाएंखिल कर उसे बह लेने दें,
जो सुप्त है कई जन्म से
हो व्यक्त सब कह लेने दें !,,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना
स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन।
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