छू पाता है उस अखण्ड को
छंद बद्ध हो जीवन अपना
गीत, सहज संगीत जगेगा,
ऋतु, दिन-रात बंधे ज्यों लय में
उर से भी सुर-ताल बहेगा !
सुख-दुःख, राग-विराग भी जैसे
आरोहण-अवरोहण बनकर,
श्वासों के संग आ महकेंगे
रसमय हर अनुभव को रचकर !
नहीं विषाद का इक लघु कण भी
छू पाता है उस अखण्ड को,
जिससे शक्ति पाती यह सृष्टि
भाव विचार का है स्रोत जो !
कभी धूप कभी छाँह सुहाती
मौसम कैसे बदलें मन के,
बंधा एक चक्र में जीवन
गगन, चन्द्रमा, सागर, जल में !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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