ध्यान में 
 ज्यों बेदखल कर देता है 
कोई पिता नाकारा संतति को 
अपनी वसीयत से 
कई बार समझाने पर  
राह पर न आना चाहे जो 
वैसे ही नादां मन जब तक नहीं किया जाता बेदखल 
चैन नहीं मिलता पल भर 
अतीत की स्मृतियों को उभारेगा
नए-नए सुझाव और विचार देगा उन्नति के 
पूर्वाग्रहों और धारणाओं से बाँधना चाहेगा 
ऊँच-नीच समझाएगा 
वैसे जैसे पुत्र रोयेगा -गिड़गिड़ायेगा 
 कठोर होना पड़ता है पिता को 
ऐसे ही झटक देना होगा विवेक से 
और स्वयं में पूर्णतया का अनुभव कर
 अपनी ही गरिमा में ठहरना सीखना होगा 
मन तो बच्चा है लाख समझाओ 
वही उसकी फितरत है 
वह बड़ा होना नहीं चाहता !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंविचारों को झकझोरती एक तथ्य।।।।। शुभकामनाएं। ।।।
जवाब देंहटाएंसत्य कहा है आपने..।सुंदर..।
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का हृदय से आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 16 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंसरल ध्यान की विधि बताई है । कठिन तो है पर असंभव नहीं ।
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